स्वतंत्रता संग्राम में आजाद हिंद फौज की महिला रेजीमेंट की सर्वोच्च कमांडर कैप्टन लक्ष्मी सहगल
लक्ष्मी सहगल को 1940 में सिंगापुर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। यहां पर उन्होंने प्रवासी भारतीयों के लिए एक चिकित्सा शिविर लगाया और वहां के गरीब भारतीय लोगों का उपचार करने लगीं।
सन् 1984 के भोपाल गैस त्रासदी में जहां उन्होंने राहत कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वहीं 1984 में सिख दंगों के समय कानपुर में शांति स्थापित करने में भी सक्रिय रही।
जबलपुर/आधुनिक भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महारथियों के साथ-साथ वीरांगनाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाकर अपना योगदान दिया है, परंतु दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह रहा है कि तथाकथित सेक्युलर महात्मा और चाचा के साथ दल विशेष के समर्थन में जिन वीरांगनाओं ने अंग्रेजों की सत्ता में सम्मिलित होकर सत्ता प्राप्ति के लिए अहिंसा का मार्ग अपनाया उन्हें मान - सम्मान, पद और इतिहास में सर्वाधिक स्थान मिला और मिलना भी चाहिए क्योंकि उन्हें तो केवल यही अधूरा पाठ पढ़ाया गया कि "अहिंसा परमो धर्म:"।जबकि पूरा पाठ था -" अहिंसा परमो धर्म:, धर्म हिंसा तथैव च:। दूसरी ओर महा महारथी चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैंसे महान् स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ जिन वीरांगनाओं स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए स्वाभिमान और शौर्य के लिए साथ सशस्त्र संग्राम का वीरोचित मार्ग अपनाया उन्हें न तो उतना मान - सम्मान मिला न ही इतिहास में समुचित स्थान मिला, चाहे वो भीकाजी कामा हों, दुर्गा भाभी हों, प्रीतिलता वाद्देदार हों, कैप्टन लक्ष्मी सहगल हों। ये आधुनिक भारत के स्वतंत्रता संग्राम के तथाकथित सेक्युलर और वामी इतिहासकारों के इतिहास लेखन का सबसे बड़ा पाप और अपराध रहा है। इन्हीं वीरांगनाओं में से एक कैप्टन लक्ष्मी सहगल थीं जिन्होंने ना केवल स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया वरन् स्वतंत्रता के उपरांत भी कई सामाजिक मुद्दों पर उन्होंने कहा सक्रिय भूमिका अदा की। कैप्टन लक्ष्मी सहगल का अवतरण 24 अक्टूबर 1914 को मद्रास के प्रांत के मालाबार में हुआ था। लक्ष्मी सहगल के पिता का नाम एस. स्वामीनाथन और माता का नाम एवी अमुक्कुट्टी (अम्मू) स्वामीनाथन था। लक्ष्मी सहगल ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल में डिग्री एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करने के बाद महिला रोग विशेषज्ञ के रुप में विशेषज्ञता प्राप्त करने के साथ उन्होंने मद्रास के एक अस्पताल में अपनी सेवाएं देना शुरू कर दीं।
लक्ष्मी सहगल को 1940 में सिंगापुर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। यहां पर उन्होंने प्रवासी भारतीयों के लिए एक चिकित्सा शिविर लगाया और वहां के गरीब भारतीय लोगों का उपचार करने लगीं। सिंगापुर रहते हुए उन्होंने घायल युद्ध बंदियों की काफी सेवा की जब ब्रिटेन ने सिंगापुर को जापान के हवाले कर दिया। इसी बीच 1943 में सिंगापुर में सुभाष चंद्र बोस का आगमन हुआ। सुभाष चंद्र बोस से मुलाकात करके बाद लक्ष्मी सहगल ने आजादी की लड़ाई में उतरने की अपनी दृढ़ इच्छा जाहिर की जिसके उपरांत सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज में लक्ष्मी सहगल के नेतृत्व में ‘रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट’ की घोषणा कर दी। रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट में उन्होंने अपने अथक प्रयासों से 500 से ज्यादा महिलाओं को सम्मिलित कर लिया एवं इस रेजिमेंट की प्रमुख होने के कारण वह ‘कैप्टन’ नाम से जानी जाती थी। अपनी दृढ़ इच्छा एवं साहस के कारण उन्हें ‘कर्नल’ का पद दिया गया जो कि संभवत एशिया में किसी महिला को पहली बार यह पद प्रदान किया गया था। हालांकि वह ‘कैप्टन लक्ष्मी’ के नाम से लोकप्रिय रही।
लक्ष्मी सहगल सिंगापुर में गठित हुई अस्थाई आजाद हिंद सरकार की कैबिनेट में वह प्रथम महिला के रूप में सम्मिलित हुईं । बर्मा को आजाद कराने के क्रम में जापानी सेना के साथ कई युद्ध लड़े। विपरीत परिस्थितियों के चलते ब्रिटिश सेना ने 4 मार्च 1946 को कैप्टन लक्ष्मी सहगल को गिरफ्तार कर लिया गया तथा मार्च 1946 तक वह बर्मा की जेल में रहीं । अंततोगत्वा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बढ़ रहे दबाव के परिणामस्वरूप उन्हें रिहा कर दिया गया। सन् 1947 में उन्होंने लाहौर में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह कर लिया और कानपुर आकर बस गईं। यहाँ चिकित्सकीय अभ्यास करने के साथ विभाजन उपरांत भारत में आने वाले शरणार्थियों की सहायता करने लगी। उन्होंने भारत विभाजन कभी स्वीकार नहीं किया। 1971 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण करते हुए राज्यसभा में अपनी पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। सन् 1971 में लक्ष्मी सहगल ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में अस्थिरता के कारण वहां से आने वाले शरणार्थियों के लिए कोलकाता में बचाव कैंप और मेडिकल कैंप का भी संचालन किया।वे सन् 1981 में स्थापित आॅल इंडिया डेमोक्रेटिक एसोसिएशन की संस्थापक सदस्य थीं। सन् 1984 के भोपाल गैस त्रासदी में जहां उन्होंने राहत कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वहीं 1984 में सिख दंगों के समय कानपुर में शांति स्थापित करने में भी सक्रिय रही। स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्रता के उपरांत उनके महत्त्वपूर्ण योगदान और संघर्ष को देखते हुए उन्हें 1998 में तत्कालीन भारत के राष्ट्रपति के.आर.नारायणन द्वारा पद्म विभूषण सम्मान से नवाज़ा गया था। 2002 में राष्ट्रपति के चुनाव में भी खड़ी हुईं परंतु जीत नहीं सकीं।
कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने 92 वर्ष की उम्र में भी चिकित्सकीय सेवा देती रहीं परंतु19 जुलाई 2012 को दिल का दौरा पड़ा और 23 जुलाई 2012 में 98 वर्ष की उम्र में स्वर्गारोहण हुआ। उनके पार्थिव शरीर को कानपुर मेडिकल कॉलेज को मेडिकल रिसर्च के दान से दे दिया गया। उनकी याद में कैप्टन लक्ष्मी सहगल इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाया गया है।
डॉ. आनंद सिंह राणा,
श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकोशल